Monday, November 19, 2007
Thursday, November 15, 2007
शोषण का मारा बचपन
हिमांशु शेखर
किसी भी समाज के भविष्य का निर्माता बच्चों को ही माना जाता है। एक तरह से कहा जाए तो बच्चे हर समाज की बुनियाद हैं। पर दुर्भाग्यवश हिन्दुस्तान के आजाद होने के साठ साल बाद भी इस देश में बच्चों की हालत काफी दुखद है। खेलने-पढ़ने की उम्र में लाखों मासूमों के नन्हें हाथ मजदूरी करने को अभिशप्त हैं। सरकार की तरफ से समय-समय पर बाल मजदूरी पर पूर्णत: रोक लगाने के दावे किए जाते रहे हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर हालत जस की तस बनी हुई है।
हर साल बाल दिवस जैसे कुछेक मौकों पर बच्चों की स्थिति पर हर तरफ चिंता जताई जाती है और फिर पूरे साल इस मसले पर खामोशी रहती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या इस तरह से बच्चों का कल्याण हो पाएगा ? बाल मजदूरी प्रतिबंधित होने के बावजूद आसानी से बच्चों को हर गली-मोहल्ले में मजदूरी करते देखा जा सकता है। ठेलों से लेकर गराज तक और बड़े से बडे अधिकारियों के घर से लेकर कारखानों तक में बच्चे श्रमिक बनने को मजबूर हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में तकरीबन 1.20 करोड़ बच्चे बतौर श्रमिक काम कर रहे हैं। लेकिन, गैर सरकारी संस्थाओं का मानना है कि ऐसे अभागे बच्चों की संख्या छह करोड़ के करीब है। जिस तरह से हर तरफ बाल मजदूर दिख जाते हैं उससे तो यही लगता है कि इनकी संख्या और अधिक होगी। बच्चों के शोषण पर आई एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक आजादी के साठ साल और बाल मजदूर निषेध एवं नियमन कानून बनने के 21 वर्ष बाद भी 1.7 करोड़ बच्चे असुरक्षित बचपन, यौन उत्पीड़न और शोषण के शिकार हैं। इन आंकड़ों से एक और भयावह तथ्य उभर कर सामने आता है। देश के कुल बाल मजदूरों में से 56 फीसदी से अधिक खतरनाक व अवैध पेशों में काम करने को मजबूर हैं।
ये आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चे काफी भयावह परिस्थिति का सामना कर रहे हैं। बच्चों को मजदूरी करने के अलावा और कई मोर्चों पर भी शोषण का सामना करना पड़ रहा है। बीते साल के आखिरी में मानवता को शर्मसार कर देने वाला निठारी कांड उजागर हुआ था। उल्लेखनीय है कि निठारी में बच्चों का अपहरण करने के बाद उन्हें हवस का शिकार बनाया जाता था। इसके बाद मासूमों को मौत के घाट उतार दिया जाता था। निठारी कांड में अब तक यह साफ नहीं हो सका है कि क्या बच्चों के अंगों की भी तस्करी की जाती थी ? पर इस संभावना को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता है। इस कांड के उजागर होने के बाद भी बच्चों का गायब होना जारी है। 21 अगस्त 2007 को राज्य सभा में गृह राज्यमंत्री वी. राधिका द्वारा दिए गए लिखित बयान के मुताबिक 2007 के 31 जुलाई तक सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से ही 4095 बच्चे गुम हुए। इनमें से 1093 का अभी तक कोई अता-पता नहीं है। इनमें से 573 लड़के और 520 लड़कियां हैं। जबकि कुल गायब बच्चों में 2359 लड़के और 1736 लड़कियां थीं। पिछले साल इस क्षेत्र में लापता बच्चों की संख्या 7028 रही। वहीं 2005 में 6726 बच्चे लापता हुए थे। जबकि 2004 में गुम हुए बच्चों की कुल संख्या 6390 थी।
भारत में बच्चों की दुर्दशा को व्यक्त करता एक अध्ययन बच्चों के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संगठन 'चाइल्ड राइटस एंड यू' (क्राई) ने किया है। इस अध्ययन के मुताबिक भारत के तकरीबन 50 प्रतिशत बच्चों को स्कूली शिक्षा मयस्सर नहीं है। जबकि भारी संख्या में बच्चे यौन उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चों का यौन उत्पीड़न कार्यस्थल पर ही हो रहा है। व्यापारिक यौन उत्पीड़न के 25 प्रतिशत शिकार 18 वर्ष से कम उम्र के हैं। क्राई की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल हिन्दुस्तान में 12 लाख बच्चे कुपोषण से मरते हैं। इस संस्था का कहना है कि 90 प्रतिशत बाल मजदूर ग्रामीण इलाकों में हैं। भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की बच्चों के शोषण पर आधारित एक अध्ययन के मुताबिक हिन्दुस्तान के 53.22 प्रतिशत बच्चे यौन शोषण के शिकार हैं। यौन शोषण का शिकार केवल लड़कियां ही नहीं बल्कि लड़के भी हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक 47.06 फीसदी लड़कियां हवस की शिकार हैं जबकि लड़कों के यौन शोषण के मामले 52.94 प्रतिशत हैं। इस मामले में देश की राजधानी शीर्ष पर है। इस रिपोर्ट में यह बात भी उभर कर सामने आई है कि पांच साल से बारह साल की उम्र के बीच यौन शोषण के शिकार होने वाले बच्चों की संख्या सर्वाधिक है। उम्र के इस शुरुआती दौर में 39.58 फीसदी बच्चों को हवस का शिकार बनाया जा रहा है।
भारत में अठारह साल से कम उम्र वालों की संख्या 39 करोड़ 80 लाख है। इसमें से 21 करोड़ की उम्र चौदह साल से भी कम है। जाहिर है, यह काफी बड़ी संख्या है। देश के इस बड़े वर्ग की हालत में सुधार किए बगैर देश का समग्र विकास संभव नहीं है। इसलिए इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। बच्चों की समस्या को दूर करने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ सामाजिक स्तर पर भी हर किसी को सकारात्मक भूमिका निभानी होगी। अगर हर कोई अपने घर में बच्चों से काम करवाना बंद कर दे तो बाल मजदूरी पर अंकुश लगाने में काफी मदद मिलेगी। हालांकि, अनेकों बच्चे ऐसे भी हैं जो गरीबी की वजह से मजदूरी कर रहे हैं। इनके कल्याण के लिए सरकार को आर्थिक सुरक्षा मुहैया करानी चाहिए। केवल योजनाएं बना देने से बच्चों की हालत नहीं सुधरेगी। जरूरत है कि इन योजनाओं को ईमानदारी से क्रियान्वित किया जाए।
किसी भी समाज के भविष्य का निर्माता बच्चों को ही माना जाता है। एक तरह से कहा जाए तो बच्चे हर समाज की बुनियाद हैं। पर दुर्भाग्यवश हिन्दुस्तान के आजाद होने के साठ साल बाद भी इस देश में बच्चों की हालत काफी दुखद है। खेलने-पढ़ने की उम्र में लाखों मासूमों के नन्हें हाथ मजदूरी करने को अभिशप्त हैं। सरकार की तरफ से समय-समय पर बाल मजदूरी पर पूर्णत: रोक लगाने के दावे किए जाते रहे हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर हालत जस की तस बनी हुई है।
हर साल बाल दिवस जैसे कुछेक मौकों पर बच्चों की स्थिति पर हर तरफ चिंता जताई जाती है और फिर पूरे साल इस मसले पर खामोशी रहती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या इस तरह से बच्चों का कल्याण हो पाएगा ? बाल मजदूरी प्रतिबंधित होने के बावजूद आसानी से बच्चों को हर गली-मोहल्ले में मजदूरी करते देखा जा सकता है। ठेलों से लेकर गराज तक और बड़े से बडे अधिकारियों के घर से लेकर कारखानों तक में बच्चे श्रमिक बनने को मजबूर हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में तकरीबन 1.20 करोड़ बच्चे बतौर श्रमिक काम कर रहे हैं। लेकिन, गैर सरकारी संस्थाओं का मानना है कि ऐसे अभागे बच्चों की संख्या छह करोड़ के करीब है। जिस तरह से हर तरफ बाल मजदूर दिख जाते हैं उससे तो यही लगता है कि इनकी संख्या और अधिक होगी। बच्चों के शोषण पर आई एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक आजादी के साठ साल और बाल मजदूर निषेध एवं नियमन कानून बनने के 21 वर्ष बाद भी 1.7 करोड़ बच्चे असुरक्षित बचपन, यौन उत्पीड़न और शोषण के शिकार हैं। इन आंकड़ों से एक और भयावह तथ्य उभर कर सामने आता है। देश के कुल बाल मजदूरों में से 56 फीसदी से अधिक खतरनाक व अवैध पेशों में काम करने को मजबूर हैं।
ये आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चे काफी भयावह परिस्थिति का सामना कर रहे हैं। बच्चों को मजदूरी करने के अलावा और कई मोर्चों पर भी शोषण का सामना करना पड़ रहा है। बीते साल के आखिरी में मानवता को शर्मसार कर देने वाला निठारी कांड उजागर हुआ था। उल्लेखनीय है कि निठारी में बच्चों का अपहरण करने के बाद उन्हें हवस का शिकार बनाया जाता था। इसके बाद मासूमों को मौत के घाट उतार दिया जाता था। निठारी कांड में अब तक यह साफ नहीं हो सका है कि क्या बच्चों के अंगों की भी तस्करी की जाती थी ? पर इस संभावना को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता है। इस कांड के उजागर होने के बाद भी बच्चों का गायब होना जारी है। 21 अगस्त 2007 को राज्य सभा में गृह राज्यमंत्री वी. राधिका द्वारा दिए गए लिखित बयान के मुताबिक 2007 के 31 जुलाई तक सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से ही 4095 बच्चे गुम हुए। इनमें से 1093 का अभी तक कोई अता-पता नहीं है। इनमें से 573 लड़के और 520 लड़कियां हैं। जबकि कुल गायब बच्चों में 2359 लड़के और 1736 लड़कियां थीं। पिछले साल इस क्षेत्र में लापता बच्चों की संख्या 7028 रही। वहीं 2005 में 6726 बच्चे लापता हुए थे। जबकि 2004 में गुम हुए बच्चों की कुल संख्या 6390 थी।
भारत में बच्चों की दुर्दशा को व्यक्त करता एक अध्ययन बच्चों के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संगठन 'चाइल्ड राइटस एंड यू' (क्राई) ने किया है। इस अध्ययन के मुताबिक भारत के तकरीबन 50 प्रतिशत बच्चों को स्कूली शिक्षा मयस्सर नहीं है। जबकि भारी संख्या में बच्चे यौन उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चों का यौन उत्पीड़न कार्यस्थल पर ही हो रहा है। व्यापारिक यौन उत्पीड़न के 25 प्रतिशत शिकार 18 वर्ष से कम उम्र के हैं। क्राई की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल हिन्दुस्तान में 12 लाख बच्चे कुपोषण से मरते हैं। इस संस्था का कहना है कि 90 प्रतिशत बाल मजदूर ग्रामीण इलाकों में हैं। भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की बच्चों के शोषण पर आधारित एक अध्ययन के मुताबिक हिन्दुस्तान के 53.22 प्रतिशत बच्चे यौन शोषण के शिकार हैं। यौन शोषण का शिकार केवल लड़कियां ही नहीं बल्कि लड़के भी हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक 47.06 फीसदी लड़कियां हवस की शिकार हैं जबकि लड़कों के यौन शोषण के मामले 52.94 प्रतिशत हैं। इस मामले में देश की राजधानी शीर्ष पर है। इस रिपोर्ट में यह बात भी उभर कर सामने आई है कि पांच साल से बारह साल की उम्र के बीच यौन शोषण के शिकार होने वाले बच्चों की संख्या सर्वाधिक है। उम्र के इस शुरुआती दौर में 39.58 फीसदी बच्चों को हवस का शिकार बनाया जा रहा है।
भारत में अठारह साल से कम उम्र वालों की संख्या 39 करोड़ 80 लाख है। इसमें से 21 करोड़ की उम्र चौदह साल से भी कम है। जाहिर है, यह काफी बड़ी संख्या है। देश के इस बड़े वर्ग की हालत में सुधार किए बगैर देश का समग्र विकास संभव नहीं है। इसलिए इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। बच्चों की समस्या को दूर करने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ सामाजिक स्तर पर भी हर किसी को सकारात्मक भूमिका निभानी होगी। अगर हर कोई अपने घर में बच्चों से काम करवाना बंद कर दे तो बाल मजदूरी पर अंकुश लगाने में काफी मदद मिलेगी। हालांकि, अनेकों बच्चे ऐसे भी हैं जो गरीबी की वजह से मजदूरी कर रहे हैं। इनके कल्याण के लिए सरकार को आर्थिक सुरक्षा मुहैया करानी चाहिए। केवल योजनाएं बना देने से बच्चों की हालत नहीं सुधरेगी। जरूरत है कि इन योजनाओं को ईमानदारी से क्रियान्वित किया जाए।
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