Sunday, August 24, 2008

सूत भी बिजली भी


हिमांशु शेखर


राजस्थान के जयपुर के पास के कुछ गांवों में चरखा ही बिजली उत्पादन का जरिया बन गया है। महात्मा गांधी ने कभी चरखे को आत्मनिर्भरता का प्रतीक बताया था। आज गांधी के उसी संदेष को एक बार फिर राजस्थान के कुछ लोगों ने चरखे के जरिए पूरे देष को देने की कोषिष की है। इस चरखे को ई-चरखा का नाम दिया गया है। इसे बनाया है एक गांधीवादी कार्यकर्ता एकंबर नाथ ने। जब इस चरखे को दो घंटे चलाया जाता है तो इससे एक खास प्रकार के बल्ब को आठ घंटे तक जलाने के लिए पर्याप्त बिजली का उत्पादन हो जाता है। यहां यह बताते चलें कि बिजली बनाने के लिए अलग से चरखा नहीं चलाना पड़ता बल्कि सूत कातने के साथ ही यह काम होता रहता है। इस तरह से कहा जाए तो ई-चरखा यहां के लोगों के लिए दोहरे फायदे का औजार बन गया है। सूत कातने से आमदनी तो हो ही रही है साथ ही साथ इससे बनी बिजली से घर का अंधियारा दूर हो रहा है। राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में चरखा चलाने के काम में महिलाओं की भागीदारी ही ज्यादा है। कई महिलाएं तो ऐसी भी हैं जो बिजली जाने के बाद जरूरत पड़ने पर घर में रोषनी बिखेरने के लिए चरखा चलाने लगती हैं। इस खास चरखे को राजस्थान में एक सरकारी योजना के तहत लोगों को उपलब्ध कराया जा रहा है। इसकी कीमत साढ़े आठ हजार रुपए है। जबकि बिजली बनाने के लिए इसके साथ अलग से एक यंत्र जोड़ना पड़ता है। जिसकी कीमत पंद्रह सौ रुपए है। सरकारी योजना के तहत पचहतर इसे वहां के लोग पचीस फीसद रकम अदा करके खरीद रहे हैं। बाकी रकम किस्तों में अदा करने की व्यवस्था है। इस चरखे को देष भर में बड़े पैमाने पर गांवों में ले जाने की जरूरत है। ताकि ग्रामीण इलाकों में लोगों को स्वरोजगार के साथ-साथ अपनी ऊर्जा जरूरतों का कुछ हिस्सा तो कम से कम उपलब्ध हो सके। वैकल्पिक ऊर्जा की राह अख्तियार करने के मामले में देष के मंदिर भी पीछे नहीं हैं। आंध्र प्रदेष का तिरुमला मंदिर का बड़ा नाम है। यहां हर रोज तकरीबन पांच हजार लोग आते हैं। अब इस मंदिर में खाना और प्रसाद बनाने के लिए सौर ऊर्जा पर आधारित तकनीक अपनाई जा रही है। इसके अलावा यहां अन्य बिजली की आपूर्ति भी सौर प्लेटों के जरिए ही की जा रही है। इन बदलावों की वजह से यहां से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी आई है। इस मंदिर में सौर ऊर्जा तकनीक की सफलता से प्रेरित होकर राज्य के अन्य मंदिर भी ऐसी तकनीक अपना रहे हंै। गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोतांे के प्रयोग को लेकर समाज में अलग-अलग स्थानों पर छोटे-छोटे प्रयोग हो रहे हैं। पर आज वक्त की जरूरत यह है कि इन प्रयोगों को बड़े स्तर पर ले जाया जाए ताकि सही मायने में बढ़ती ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति की जा सके। इसके अलावा आज इस सवाल पर भी विचार करने की जरूरत है कि उपलब्ध ऊर्जा के संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए। दिन में भी जलते रहने वाले स्ट्रीट लाइट और अनावष्यक तौर पर सरकार का महिमामंडन करने वाले विज्ञापन के लिए प्रयोग में लाई जा रही ऊर्जा को भी संरक्षित किए जाने की दरकार है। आजकल दिल्ली में हर तरफ ‘बदल रही है मेरी दिल्ली’ के सरकारी विज्ञापन दिख जाते हैं। रात भर रोषनी से जगमगाने वाले इन विज्ञापनों में अच्छी-खासी बिजली की खपत हो रही है। हमें यह भी सोचना होगा कि आखिर हमें बिजली किस कार्य के लिए चाहिए? अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए या फिर ऐषो-आराम और दिखावे के लिए।

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